शुक्रवार, 24 जुलाई 2009

गुरुवार, 23 जुलाई 2009

संवेदना का फर्क


घर के लॉन मैं कई दिनों से एक बंदरिया आ ठहरी है एक बच्चे को जनम दिया है उसने दिन भर उसकी किलकारियों की गूँज ही सुनाई पड़ती है
आज पड़ोस के गुप्ता जी भी एक खुशखबरी दे गए हैं की उनकी बहु पेट से है चेकअप कराया है पता चला है लड़की होगी गुप्ताजी प्रसन्ना हैं रिटायर होने के बाद काफी बोर होते थे बच्ची होगी तो मन बहल जाएगा
दो दिन बाद
आज अचानक एक हादसा हो गया बंदरिया के बच्चे की गिर जाने की वज़ह से मौत हो गयी लॉन मैं सन्नाटा सा छाया हुआ है मन नही लगा तो सोचा की गुप्ता जी के यहाँ ही चला जाए
लेकिन गुप्ता जी के यहाँ देखा तो माहोल कुछ अजीब था सभी घरवाले उदास थे सिवाय बहु के पता चला की गर्भ मैं लड़की होने की वज़ह से बहु किसी को बताये बिना चुपचाप गर्भपात करा आयी है बेचारे गुप्ताजी को सांत्वना देकर मैंने अपने घर की रह पकड़ी
वापस लॉन मैं पंहुचा तो देखा की वह बंदरिया अभी भी अपने मरे हुए बच्चे को चिपकाये हुए घूम रही है

बहुत आश्चर्य हुआ की एक तरफ़ अपने आधुनिक होने का दंभ भरने वाले नारी है जो अपने ही अजन्मे बच्चे को पेट मैं ही मार डालती है और दूसरी तरफ़ एक बेजुवां जानवर है जो अपने मरे हुए बच्चे को भी सीने से लगाये घूम रहा है