शुक्रवार, 19 मार्च 2010

विश्व गौरेया दिवस


चीं चीं करती, फुदकती छोटी सी चिड़िया पहले हर जगह देखि जाती थी किन्तु बदले पारिस्थितिक तंत्र मैं गौरया गायब होती जा रहीं हैं

किसानो की दोस्त और बीमारी फ़ैलाने वाले छोटे छोटे कीड़े मकोड़ों से हमको बचने वाली इस नन्ही सी चिड़िया को अब खुद के अस्तित्वा को बचाना मुश्किल हो रहा है

हम सब का ये दायित्वा है की विश्व गौरया दिवस पर पक्षियों के संरक्षण का हम खुद से वडा करें

सिर्फ गौरया ही नहीं अपितु प्राकृतिक संतुलन को कायम रखने वाले हर जीव को जीने के लिए पर्याप्त माहोल दें

4 टिप्‍पणियां:

  1. विश्व गौरेया दिवस की शुभकामनाएँ.

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  2. ओ गौरेया.....

    ओ गौरेया.....
    नहीं सुनी चहचहाहट तुम्हारी
    इक अरसे से
    ताक रहे ये नैन झरोखे
    कुछ सूने और कुछ तरसे से


    फुदक फुदक के तुम्हारा
    होले से खिड़की पर आना
    जीवन का स्वर हर क्षण में
    घोल निड़र नभ में उड़ जाना’


    धागे तिनके और फुनगियां
    सपनों सी चुन चुन कर लाती
    उछलकुद कर इस धरती पर
    अपना भी थी हक जतलाती


    सिमट गई चिर्र-मिर्र तुम्हारी
    मोबाइल के रिंग-टोन पर
    हंसता है अस्तित्व तुम्हारा
    सभ्यता के निर्जीव मौन पर

    मोर-गिलहरी जो आंगन को
    हरषाते थे सांझ-सकारे
    कंक्रीट के जंगल में हो गए
    विलिन सभी अवषेश तुम्हांरे

    तुलसी के चौरे से आंगन
    हरा-भरा जो रहता था
    कुदरत के आंचल में मानव
    हंसता भी था और रोता था ।

    भूल गये हम इस घरती पर
    औरों का भी हक था बनता
    मानव बन पशु निर्दयी
    मूक जीवों को क्यों हनता ।

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